बिहार मे आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका और त्रिस्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों का मान

पटना: आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका और त्रि-स्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों जैसे मुखिया, सरपंच, समिति, वार्ड सदस्य, उपमुखिया, उपसरपंच एवं सरपंच के पंचों को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने नववर्ष की बड़ी सौगात भेंट की है। मुख्यमंत्री ने इन सभी का मानदेय बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। जो काम पिछले तीस साल के दौरान नहीं हुआ, बिहार की नवगठित गठबंधन सरकार ने बिना भेद-भाव किए। बिना जात-पात किए, बिना मंदिर-मस्जिद और हिन्दू-मुस्लिम का नाम लिए, उसपर राजनीति किए, अंतिम रूप दे दिया। और एक साथ 2,30,018 अंगनबाड़ी सेविका और सहायिका एवं लगभग सवा दो लाख त्रि-स्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों का मानदेय, एक साथ बढ़ाने का ऐलान कर दिया है। और ये वृद्धि हुआ मानदेय 1 अप्रेल 2024 से लागू करने का प्रस्ताव पारित कर दिया है। सरकार के इस फैसले के बाद योजना में राज्य की 40 प्रतिशत हिस्सेदारी से बढ़कर अब 61.43 प्रतिशत हो जाएगी जबकि केंद्र की 60 प्रतिशत से घटकर 38.57 प्रतिशत रह जाएगी। यानि मानदेय में वृद्धि के बाद बिहार सरकार को इस मद में अतिरिक्त 616.37 करोड़ रुपये का वहन करना होगा। इतना बड़ा फैसला लेने के बाद बिहार सरकार ने कोई होडिंग नहीं लगाई, कोई प्रचार नहीं किया। कोई पोस्टर नहीं छपवाया। नहीं तो आजकल 5 किलो राशन और 500 रुपए के लिए हर घर में फोटो छपा मिलता है। आपको आगे बताएँगे कि सरकार ने किस पद के लिए कितने रुपए बढ़ाई हैं। लेकिन पहले और क्या कुछ घोषणा किया है उसे भी जान लीजिये। बिहार सरकार ने देश और अंतरराष्ट्री स्तर पर खेलों में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए युवाओं को प्रशिक्षित देने, बिहार में स्टेडियम का विकास करने, खेल प्राधिकरण की गतिविधियां, खेल विश्वविद्यालय के संचालन, साथ ही प्रदेश में खेल कूद को प्रोत्साहन देने के लिए, मंत्रिमंडल ने प्रदेश में एक नया विभाग “खेल विभाग” गठित करने का प्रस्ताव स्वीकृत किया है। यानि जो खेल-कुद कल तक “खेल विभाग कला संस्कृति एवं युवा विभाग” के अधीन था अब जल्द ही इससे अलग होकर नया खेल विभाग हो जाएगा। अब तक प्रदेश में कुल 44 विभाग थे इसके जुडने के बाद 45 विभाग हो जाएंगे। इसके लिए सरकार अलग से बजट लेकर आएंगीं। जो खिलाड़ी कलतक देश के बाकी राज्यों में जाकर खेलते थे जल्द ही वे बिहार से खेलेंगे। यहीं प्रशिक्षण लेंगे और फिर बिहार का नाम पूरे देश और विदेश में रौशन करेंगे। इतना ही नहीं बिहार में 27 साल बाद फिर से इतिहास दोहराया गया। यहाँ रणजी ट्रॉफी खेली गई। जिस काम को पिछली सरकार 17 सालों में नहीं कर पाई। वो काम सिर्फ ढाई साल से सत्ता में रही गठबंधन सरकार ने कर दिखाई। मैंने पिछली सरकार का नाम इसलिए लिया क्यों 1969 में स्थापित हुए इस स्टेडियम में पहली बार पुरुष क्रिकेट टीम ने 1993 में मैच खेला। और उस वक़्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे। और जब इस मैदान पर आखिरी मैच 1996 में खेला गया तो उस वक़्त भी मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ही थे। और सूत्रों के अनुसार आज अगर 27 साल बाद एक बार फिर से इस मोइनूल हक़ स्टेडिम में क्रिकेट खेला जा रहा है, तो इस वक़्त भी लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव के कारण ही राज्य के युवाओं का सपना पूरा हो पाया है। इतना ही नहीं जिस बिहार के युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए वर्षों से बेचैन रहे थे, उसे भी बिना जाति-धर्म, मंदिर-मस्जिद किए बेहद कम समय में यहाँ कि गठबंधन सरकार ने उनके सपनों को पूरा किया और प्रयास जारी है। आखिर के महज तीन महीने यानि नवंबर 2023 से जनवरी 2024 तक बिहार के गठबंधन सरकार ने इतिहास रचते हुए लगभग 2,25,000 नव नियुक्त शिक्षकों को नियुक्ति पत्र देने वाला देशभर में बिहार को प्रथम राज्य बना दिया है। अब आप सोच रहे होंगे कि आज मैंने बिहार गठबंधन सरकार कि कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर दी है। तो मेरी इस बात को गौर से सुनिएगा। किसी भी राज्य और देश का विकसित तय करता है वहाँ का जीडीपी। सरकार देश या राज्य में बस रहे वहाँ के नागरिकों के जरिए ही कई माध्यम से पैसे कमाती है। और फिर देश या राज्य का विकास करती है। अगर हमारे पैसे को सरकार अलग-अलग माध्यम से हम खर्च करती है, तो इसमे सरकार चला रहे नेताओं का हमपर कैसा एहसान। ये तो उनका कर्तव्य है। देश या राज्य में सरकार चला रहे नेताओं का वहाँ के नागरिकों पर कोई एहसान नहीं होता है। लेकिन हाँ, सरकार और नेताओं की साफ-सुथरी सोच और निःस्वार्थ भाव से जनताओं के लिए समर्पित होना और उनके हक़ के लिए सोचना, नागरिकों को तारीफ करने पर मजबूर कर देता है। सरकार भले ही बदल जाए लेकिन लोगों की नौकरी 60 वर्षों तक नहीं जाने वाली है। 60 वर्षों तक उन्हें कमाने-खाने का जरिया मिल गया। वैसे भी एक मनुष्य को सबसे पहले जीने के लिए कम से कम दो वक़्त की रोटी, बदन ढकने के लिए कपड़ा और रहने के घर सबसे ज़्यादा ज़रूरत होता है। उनके लिए सबसे पहले ये तीन चीज़ें आतीं है फिर बाद में मंदिर-मस्जिद, गुरद्वारा, गिरजाघर वगैरह। और जो सरकार पहले तीन चीजों को महत्व देती है वही नागरिकों के लिए अच्छी सरकार होती है और होना भी चाहिए। चाहे सत्ता में बैठे किसी की भी सरकार यों न हो। क्योंकि जब पेट भूखा होता है तो व्यक्ति को न तो भगवान सूझता है और न ही ईश्वर, अल्लाह। न ही उसे कुरान सूझता है और ना ही गीता। उसे न तो मस्जिद दिखाती है और ना ही मंदिर।