Arvind Kejriwal का "अहंकार" ले डूबा AAP, नहीं तो BJP नहीं जीत पाती Delhi

MD IMRAN I WeeHours News Delhi : अरविंद केजरीवाल अपने अहंकार के कारण सिर्फ अपनी सीट ही नहीं जबकी दिल्ली भी हार गए. जी हां आपने बिल्कूल सही सुना. अगर समय को भांपते हुए अरविंद केजरीवाल अपने EGO को साईड कर, कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ते, तो ये दिन उन्हें देखने को नहीं मिलता, क्योंकि आज अगर आप दिल्ली हारी है तो इसके पीछे कांग्रेस है और इसके लिये भी सिर्फ अरविंद केजरिवाल ही जिम्मेदार हैं. केजरीवाल यहां भूल गए कि ये हरियाणा नहीं दिल्ली है, जहां कि जनता जन्मजात बुद्धीमान होती है. जब सवा सौ साल पुरानी पार्टी को उखाड़ फेंकने में दिल्ली वासियों को देर नहीं लगी, तो आम आदमी पार्टी को अभी जुम्मा जुम्मा आठ ही हुए हैं उसके साथ क्या करेगी. खैर परिणाम और कारण को लेकर आगे चर्चा करेंगे लेकिन आपको बता दूं कि हमने दिल्ली चुनाव को लेकर अपना सर्वे दिखाया था.. जिसमें बताया था कि इस बार अरविंद केजरीवाल, मनिष सिसोदिया, अवध ओझा अपना चुनाव हार सकते हैं. साथ ही कहा था कि इस बार दिल्ली में BJP सरकार बनाने में कामयाब हो जायेगी. जैसा हमने यानि Weehoursnews.com ने अपने सर्वे में बताया था.. ठीक वैसा ही हुआ. इस चुनाव में सिर्फ केजरीवाल ही नहीं हारे CM आतिशी मार्लेना को छोड़कर आम आदमी पार्टी के सारे धुरंधरों को BJP ने धूल चटा दिया. औऱ ये सब संभव हो पाया अरविंद केजरीवाल के अहंकार के कारण. अपनी EGO को साईड में रखकर अगर केजरीवाल कांग्रेस के साथ मिलकर दिल्ली चुनाव लड़ते तो शायद BJP पिछली बार की तरह दहाई आंकड़े भी पार नहीं कर पाती. क्योंकि इस चुनाव में 15-20 सीटों पर AAP को हार सिर्फ कांग्रेस के कारण हुई है. अब आपके मन में सवाल चल रहा होगा की जो आम आदमी पार्टी 2015- 2020 में इतना अच्छा प्रदर्शन की थी, अचानक ये ये संभव कैसे हुआ तो आपको आगे बतायेंगे दिल्ली में शनिवार को विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम घोषित हुआ. जहां इस चुनाव में BJP को 48 सीटें मिली जबकि AAP को सिर्फ 22 सीटों पर जीत हांसिल हुई. कांग्रेस इस बार भी एक भी सीट जीतने में विफल रही. लेकिन आम आदमी पार्टी को हराने और बीजेपी को जिताने में महत्वपूर्ण रोल अदा किया. इसके साथ ही ये चुनाव अरविंद केजरीवाल की अहंकार के कारण कमजोर साबीत हुआ. वो कैसे आपको आगे संक्षेपण में बताते हैं. दरअसल दिल्ली चुनाव हारने के बाद लोग सोशल मीडिया पर खुलकर लिखने लगे हैं कि अरविंद केजरीवाल की अहंकार ने उसे दिल्ली चुनाव में बाहर का रास्ता दिखा दिया. वहीं अगर दिल्ली में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ती तो शायद BJP किसी भी सूरत में सत्ता में नहीं आती क्योंकि कांग्रेस ने सीधे तौर पर AAP को 15-20 सीटों पर हार का मुंह देखने को मजबूर किया. यानि कांग्रेस के कारण आम आदमी पार्टी लगभग 20 सीटों पर चुनाव हार गई. जैसे, बड़ी सीट नई दिल्ली की. यहां , अरविंद केजरीवाल बीजेपी प्रत्याशी प्रवेश वर्मा से सिर्फ 4 हजार 89 वोट से हार गए. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी संदीप दीक्षित को 4 हजार 568 वोट मिले. यानि अगर दोनों साथ लड़े होते तो केजरीवाल नहीं हारते. दूसरी सीट जंगपुरा की लिजिये, यहां से मनीष सिसोदिया की भी हार कांग्रेस की वजह से हुई. सिसोदिया BJP प्रत्याशी तरविंदर सिंह मारवाह से सिर्फ 675 वोट से हारे. जबकि, कांग्रेस प्रत्याशी फरहाद सूरी को 7 हजार 350 वोट मिले. इसी तरह बादली सीट पर आप उम्मीदवार अजेश यादव BJP प्रत्याशी दीपक चौधरी से 15 हजार से अधिक वोटों से हारे हैं. जबकि, इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी देवेंद्र यादव को 41 हजार 71 वोट पड़े हैं. इसी तरह बिजवासन सीट से BJP प्रत्याशी कैलाश गहलोत आम आदमी प्रत्याशी से 11 हजार 276 वोट से जीते हैं, जबकि, इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी ने 9 हजार 409 वोट लाए हैं. छतरपुर से BJP प्रत्याशी करतार सिंह तंवर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी ब्रह्म सिंह तंवर को 6239 वोट से हराया है. जबकि, इस सीट पर काग्रेंस प्रत्याशी राजेंद्र सिंह तंवर को 6 हजार 601 वोट मिले हैं. इसके अलावा त्रिलोकपुरी, ग्रेटर कैलाश, नांगलोई, तिमारपुर, मालवीय नगर, राजेंद्र नगर, संगम विहार, दिल्ली कैंट जैसे विधासनभा सीटें भी हैं, जहां ‘आप’ की हार का कारण कांग्रेस बनी है. BJP की जीत का अंतर इन सीटों पर कांग्रेस के वोटों से कम हैं. आम आदमी पार्टी को इस तरह से तकरीबन 15 से 20 सीटों पर कांग्रेस ने खेल बिगाड़ दिया है. बेशक BJP 48 सीटों पर जीत गई है, लेकिन अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन होते तो ये स्थिति नहीं होती. ऐसे में अब राहुल गांधी और अऱविंद केजरीवाल दोनों को पछतावा हो रहा होगा. जानकार बताते हैं कि दोनों पार्टियां अगर एक साथ चुनाव लड़ते तो बीजेपी अपनी पुरानी वाली स्थिति से बाहर नहीं निकल पाती. बीजेपी को सिंगल डिजिट में ही संतोष करना पड़ता. लेकिन ऐसा कौन करता? केजरीवाल साहब तो ठहरे मुख्यमंत्री वे किसी की कहां सुनने वाले हैं. उन्हें लगा कि जनता ने पिछले 3 बार की चुनाव में हमें चने की झार पर नहीं जबकि पीपल की पेड़ पर चढा दिया है जो, दशकों तक सर्दी, गर्मी, बरसात में डटकर टिका रहेगा लेकिन केजरीवाल जी भूल गए, कि जो वोटर उनके साथ हैं वो कोई मुर्ख नहीं है.. देश की राजधानी की पढी लिखी जनता है.. जिस जनता को सवा सौ साल पुरानी पार्टी को उखाड़ने में देर नहीं लगी, उसे जुमा जुमा आठ दिन बने पार्टी को जमींन में धसाने में कितनी देर लगेगी. वो भी दुसरे की वोटर के दम पर. सभी जानते हैं कि कांग्रेस के सारे वोटर आम आदमी में शिफ्ट कर गए. वहीं जिस मुसलमानों ने केजरीवाल को सिर पर बैठाया.. उसे चले थे आंख दिखाने. क्या हुआ परिणाम मिल गया.. बिते 5 सालों में केजरीवाल ने मुसलमानों का नाम लेना तक मुनासीब नहीं समझा. चाहे दिल्ली दंगा हो, मुसलमानों का मॉब लिंचिग हो, मस्जिद का सर्वे हो या दोनो समुदाय को लेकर कहीं झड़प हुआ हो.. किसी भी मुद्दे पर केजरीवाल ने मुसलमानों का एक बार भी साथ नहीं दिया. साथ तो छोड़िए एक शब्द बोलना भी गवारा नहीं समझा. इस चुनाव का ही ले लिजिये.. केजरीवाल दिल्ली के कई सारे मंदिर गए लेकिन मुसलमानों का मस्जीद तो छोड़ीये उनका मुहल्ला तक जाना मुनासीब नहीं समझे. मुसलमान इस इंतेजार में थे कि अब केजरीवाल बोलेगा लेकिन बिल्कूल नहीं.. उन्हें तो लग रहा था कि मुस्लिम वोटर मूर्ख होते हैं. उनके पास कोई दुसरा Option नहीं है. आखिर में घुम फिर कर वोट हमें ही करेंगे. जहां इसबार सभी ने दिखा दिया की भाई कांग्रेस है हमारे पास और BJP भी हमारा दुश्मन नहीं है. आंकड़े कहते हैं की इस बार मुसलमानों ने कांग्रेस और BJP दोनों को वोट किया है. इसके अलावा जिस प्रकार से भाजपा ने केजरीवाल की मुफ्तखोरी को अपने चुनावी मुद्दे में डाला, केन्द्रीय कर्मचारियों को 8वां वेतन आयोग की मंजूरी, 12 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं जैसे घोषणा और महाकुंभ की सफलता से दिल्ली वालों ने अपना दिल BJP को दे दिया